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जब मैंने अपने लेख दबंग दरोगा राजकमल शर्मा में एक सनकी ब्लागर का जिक्र किया था तो शायद उस बात को ज्यादातर साथियों ने पसंद नहीं किया था ….. लेकिन बाद में हमारे उस दोस्त की सनक रूपी मर्ज उतना ही बढ़ती गई जितना की उसका इलाज हुआ जिसके परिणामस्वरूप पहले उनकी एक पोस्ट पर बैन लगा और अंत में जब उन्होंने अपनी सनक जागरण के फीडबैक पर जाहिर की तो उनको अपनी औकात से बाहर जाकर नियम और कायदे के विरुद्ध अनुचित तरीके से आचरण के कारण तथा कानून को अपने हाथ में लेने के कारण बाहर का रास्ता दिखा दिया गया …..
उनकी ही कैटिगिरी के एक और हमारे साथी है दिनेश कुमार जी आस्तिक …… यह भी उस बहिष्कृत सनकी ब्लागर की तरह ही बर्ताव करते है लेकिन यह उनका थोडा सा सुधरा हुआ रूप है इसलिए खुद ही गर्व से इस बात को मानते है की यह “सनकी” है और इनके लेख “विवादित” होते है …..
इन्होने अपनी एक प्रतिकिर्या में यहाँ तक कह दिया की :-
“मैं भी कृष्ण को महान मानता हूँ
किन्तु उनके कुछ कृत्य मानवीय दृष्टि से क्षम्य नही ं हैं।
हो सकता है कि मेरे विचारों से कोई सहमत न हो किन्तु मैं तार्किक कारणों से अपने
विचारों पर अटल हूँ।
भगवान को कोई ना माने और उनके अस्तित्व को सिरे से ही नकार दे इसमें ना तो मुझको कोई आपति है और ना की किसी दूसरे को होनी चाहिए ….. लेकिन असली समस्या तब पैदा होती है जब कोई सनकी भगवान के चरित्र और उनके कार्यों पर ऊँगली उठाये ….. मैंने अपने खुद के ब्लॉग पर और बाद में इनके खुद के ब्लॉग पर जाकर भी इनसे उपर्लिखित प्रतिकिर्या के बारे में जानना चाहा की हमे योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी के उन कार्यों के बारे में “तर्क सहित” विस्तार से बतलाया जाये जोकि इनकी दृष्टि में अक्षम्य है….. हो सकता है की इनके गरिमापूर्ण उच्च विचार जान कर हम भी इनके रंग में रंग कर , इनकी तरह भगवान के अस्तित्व को नकारने लग जाए ……
इनके इस तरह के विचारों को जानने के बाद ही मैंने कह दिया था की जहाँ पर गुरु और भगवान का अपमान होता हो , वहां पर जाना घोर पाप की श्रेणी में आता है ….. मैं जानता हूँ की कमेन्ट हम सभी की बहुत भारी भरकम कमजोरी बन चुकी है ….. हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठा कर कुछ ब्लागर अपने मनमाने और अन्यायपूर्ण विचार हम पर थोपते रहते है …… जब हम महज एक अदद कमेन्ट की एवज में अपनी आत्मा की आवाज और जमीर को दबा सकते है तो हम किस मुंह से भ्रष्ट और रिश्वतखोर नेताओ और अफसरशाही की आलोचना करते है …..
यहाँ पर हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार जागरण जंक्शन ने दिया है लेकिन उसकी आड़ लेकर कोई हमारी धार्मिक भावनाओं तथा आस्था से खिलवाड़ करने का अधिकारी नहीं बन जाता ….. किसी भी लेखक से अगर उसके लेख और प्रतिकिर्या में व्यक्त व्यक्तिगत विचारों की बाबत कोई सवाल पाठक द्वारा पूछा जाता है + संदेह प्रकट किया जात है तो उसका उत्तर देना तथा पाठक को पूर्णरूपेण संतुष्ट करवाना लेखकीय धर्म की श्रेणी में आता है …..
मैं उम्मीद करता हूँ की सम्बन्धित ब्लागर भाई टालमटोल की बजाय अपने पक्ष को हम सभी के सामने रखेंगे या फिर अपने अविवेकपूर्ण आचरण तथा धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने के लिए सभी से सावर्जनिक रूप से क्षमा मांगेंगे और आप सभी से भी अपील करता हूँ की कमेन्ट का मोह त्याग कर चीजों को उनके सही परिपेक्ष्य में देखने की कोशिश किया कीजिये …… अपनी कलम की आवाज की आज़ादी को हर हाल में कायम रखिये ….. इसी में हम सबका और इस मंच का भला है + उन्नति है …..
राजकमल शर्मा
“यह कैसी आस्तिकता” !!!
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