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“अंडर अचीवर” प्रधानमंत्री – अयोग्यता का प्रमाण या गरिमा के साथ खिलवाड़ ?-राजकमल प्रोडक्शन”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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कभी शीत  युद्ध काल का वोह समय भी था की जब कोई विदेशी राजनेता हमारे देश में आता था तो हमारे देश के मीडिया और नेताओ  की उससे यही एकमात्र उपेक्षा रहती थी की वोह यह वक्तव्य जरूर दे की कश्मीर मसले का हल भारत और पाकिस्तान को बिना किसी मध्यस्थ के आपसी बातचीत के  द्वारा मिल बैठ कर निकालना चाहिए ….. लेकिन वोही राजनेता बाद में अगर अपने देश में या फिर पाकिस्तान में जाकर उससे उल्ट बोलता था तो हम उसे अपने देश के भीतरी मामलों में विदेशी दखलंदाजी मानते थे ….. ऐसा नहीं है की  यह हम लोगों की  केवल पहले की मानसिकता और सोच थी बल्कि आज भी हालात जस के तस ही है  …. कम से कम इस मामले में तो हम बिलकुल भी नहीं बदले है …..

विदेशी अगर कोई तारीफ कर दे तो हम उसको ब्रह्म वाक्य मान  कर उस पर फूल चढ़ाते हुए अपना आचरण उसी अनुसार कर लेते है ….. याद कीजिये जब कपिल देव पर मैच फिक्सिंग की काली छाया पड़ी हुई थी तो विसडन द्वारा सन 2002 में एक विदेशी पत्रिका द्वारा उनको सदी का महानतम आलराउंडर बताने पर उनके प्रति हमारी समग्र सोच ही बदल गई थी सिवाय बी. सी.सी.आई. के ….. कुछ इसी प्रकार जब सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को हमने बीता  हुआ कल मान  लिया था तो उनको भी बी.बी.सी. द्वारा 1999 में सदी का महानायक” का खिताब देने पर हमारी सोच उनके प्रति पूरी तरह से बदल गई ….. यदि विदेशियों द्वारा कपिल देव और अमिताभ का सन्मान ना किया जाता  तो आज कपिल देव गुमनामी के अँधेरे में होते और अमिताभ बच्चन बहू ऐश को चपाती  बनाना सिखा रहे होते ……. इन सभी मामलों में एकमात्र अपवाद किरण बेदी ही रही है जिनका सन्मान विदेशियों ने तो किया है लेकिन हमने खुद उनका तिरस्कार किया है और उनको हर  बार नीचा दिखाया है यहाँ तक की उनकी  नौकरी की अवधि बढ़ाने की बजाय उनको समय से पहले रिटायर किया गया ……

अब आते है मनमोहन सिंह जी पर लगाए गए आरोपों पर ….. अगर मैं गलत नहीं हूँ तो कुछ इसी प्रकार के आरोप किसी विदेशी पत्रिका में माननीय अटल जी पर भी लगाए गए थे ….. जिसके परिणामस्वरूप उनको लोह पुरुष आडवाणी जी को उपप्रधानमन्त्री बनाना पड़ा था ….. इस बार भी मुझको लगता है की कुछ उसी से मिलता जुलता या फिर उससे भी कुछ बढ़ कर होने वाला है ….. वोह फेरबदल क्या होगा और किस तरह का होगा यह निकट भविष्य में आप देख ही लेंगे …..

भारत में अधिकाँश जनता उनको निकम्मा कहती है और मानती भी है , जो उनको अच्छा कहते है उनको चाटुकार कहा जाता है ….. और अगर कोई विदेशी उनकी बुराई करता है तो वोह हमसे सहन नहीं होती ….. क्यों भाई उनको बुरा कहने का ठेका सिर्फ तुम देशवासियो ने ही ले रखा है क्या ?….. अगर बाहर वाले तुम्हारी कही हुई बात को ही पकड़ कर आगे बढ़ाते है तो तुमको नाराज़ होने की बजाय खुश होना चाहिए ….. तुम बुराई करो तो वोह तुम्हारी मौलिक आजादी और नैतिक अधिकार लेकिन विदेशी क्या तुम्हारे गुलाम है जो तुम्हारे कहने पर चलेंगे , क्या वोह आजाद नहीं है ?…..

मैन इन शैडो नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में डॉ मनमोहन सिंह की काबिलियत और कांग्रेस को संकट से उबारने के लिए उनकी गंभीरता पर सवालिया निशान लगाया गया है……

यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है की राष्ट्रपति ओबामा की खुद की विश्वनीयता में कितनी गिरावट आई है ….. इस बारे में कभी यूरोप की किसी भी पत्रिका ने कोई सवाल उठाया है कभी ? ….. कदापि नहीं और उनसे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं है क्योंकि उनको दूसरों के घरों की खिड़कियों और दरवाजों पर पत्थर बरसाने से ही फुर्सत नहीं मिल पाती है ….. जहाँ तक भारतीय विपक्ष की बात है उसकी कोई भी परवाह  सत्तारूढ़ पार्टी को नहीं करनी चाहिए क्योंकि विपक्ष का तो काम ही सरकार के मुखिया की छिछालेदारी करना और बात बेबात पर उसका इस्तीफा माँगना होता है ….. अब रह गई बात प्रधानमंत्री पद  की गरिमा की…. अब देश का प्रधानमंत्री होने की बजाय वोह पार्टी की तरफ से बनाया गया प्रधानमंत्री पहले होता है …. इसलिए पूरे देश के विकास की बजाय अपनी पार्टी की सत्ता वाले प्रदेशो के विकास की तरफ ही ध्यान दिया जाता है ….. बेशक पूरे देश में प्रधानमंत्री के नाम का सिक्का चलता है लेकिन असली सत्ता केवल उसकी पार्टी की सत्ता वाले प्रदेशो में ही मानी जाती है …..

हमारे मनमोहन सिंह जी को खुद पर जितना विश्वास पहले था उतना ही आज भी है ….. यह अलग बात है की अब हमारे देशवासियों की बजाय पूरी दुनिया उन पर विश्वाश करती है …. एक कहावत है की “घर का जोगी जोगड़ा और बाहर का जोगी सिद्ध”….. हम चाहे उनकी काबलियत का लोहा ना माने लेकिन पूरी दुनिया तो मानती ही है ,शायद इसीलिए ओबामा भी मनमोहन सिंह जी से वैश्विक आर्थिक मंदी से निपटने के लिए अनेको बार सलाह मांग चुके है ….. कितनी हैरानी की बात है की जो शख्स पूरी दुनिया को दिशा दिखा सकता है वोह खुद दिशाहीन है आत्मविश्वास  विहीन है …..

अगर भ्रष्टाचार की बात करे तो मेरा मानना है की जनता के गाढ़े खून पसीने की कमाई का पैसा खाना भी एक कला है ….. लेकिन उन कच्चे  चोरों को क्या कहियेगा जो घौटाले तो करते है लेकिन अपने अनाड़ीपन की वजह से पकड़े जाते है और खुद के साथ साथ सरकार तथा पार्टी की किरकिरी करवाते है तथा देश के नाम को बट्टा लगाते है ….. अब अगर मनमोहन सिंह जी उन मंत्रियो पर किसी किस्म की कार्यवाही करते तो सभी को यही सन्देश जाता की अपने काम में “पूर्ण रूप से दक्ष” ना होने के परिणाम स्वरूप ही उन मंत्रियो को यह दण्ड मिला है ….. वैसे  भी भलाई इसी में है की किसी भी तरह से अपना कार्यकाल पूरा कर लिया जाए बजाय इसके की किसी काबिल मंत्री पर कार्यवाही करके अपनी सरकार को समय से पहले गिराकर  देश को असमय  ही मध्यावधि चुनावो की भट्टी में झोंक दिया जाए …..

स्वामिभक्ति भी कोई चीज होती है , खुद को बनाने वाले से कोई एहसानफरामोश ही बड़ा हो सकता है ….. हमे किसी छोटे से महकमे में कोई साधारण सी पोस्ट मिल जाए तो हम पद  देने वाले के अनुग्रहित हो जाते है उसकी चापलूसी करते है ….. जिसको देश का सर्वोच्च पद  मिला हो और वोह अगर अपनी वफादारी प्रदर्शित करता है तो उससे  नमकहलाली छोड़ कर नमकहरामी की उम्मीद करने वाले महामूर्खो के स्वर्ग में रह रहे है …. सोचिये अगर सबसे ऊँचे पद  पर बैठा व्यक्ति ही नमकहरामी वाला आचरण करेगा तो उसका अनुसरण करते हुए पूरे देश में अराजकता के हालात पैदा हो जायेंगे ….. क्योंकि हमने देखा है की राजीव गाँधी पर रिश्वत  के झूठे आरोपों के बाद से ही रिश्वत को स्वीकार्यता मिली थी क्योंकि हरेक व्यक्ति यही कहता था की जब देश का प्रधानमंत्री रिश्वत ले सकता है तो हमे लेने में क्या हर्ज है …..

देशवासी उस समय को भूल गए है जब विमान कर्मचारियों को राजठाकरे के दखल से दुबारा नोकरी पर रखा गया था ….. अगर मंदी के उस दौर में लाखों लोग बेरोजगार हो जाते तो हमारे टूट कर बिखरने वाले समाजिक ढ़ांचे की आप कल्पना ही कर  सकते है की तब क्या होता …. यदि देश आज पूरी तरह से सम्पन्न नहीं है तो विकास में पिछड़ा भी नहीं है ….. परमाणु करार के मुद्दे पर जिस तरह की द्रढता का परिचय मनमोहन सिंह ने दिया था उनसे वैसे ही आचरण की अपेक्षा आप हरेक मुद्दे पर नहीं कर सकते है ….. आज आप जिस किसी को भी मिलो + हालचाल पूछो तो वोह यही कहता मिलेगा की “कुछ खास नहीं बस टाइम पास हो रहा है ….. अरे भाइओ और बहनों अगर हमारे मनमोहन सिंह जी भी अपना टाइम पास कर रहे है तो किसी के पेट में तकलीफ क्यों होती है …..

अन्त में मैं यही कहना चाहता हूँ की हम भारतीयों की मानसिकता ऐसी है की हम पाकिस्तान के खिलाफ ताल ठोकने वाले प्रधानमन्त्री को ही काबिल मानते आये है फिर चाहे वोह शास्त्री जी हो + इन्दिरा जी हो या फिर अटल जी हो ….. इस कसौटी को अगर सच मान  लिया जाए तो इसका एक ही नतीजा निकलता है की मूक मनमोहन सिंह जी को पकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ देनी चाहिए ….. आखिर कब तक हम उसके द्वारा युद्ध की पहल करने का इंतजार करते रहेंगे ….. हमारा प्रधानमन्त्री कैसा भी ही हमारी काबिलेतारीफ सेना युद्ध तो जीत ही जायेगी , और सरदार जी की हो जायेगी बल्ले -२ और सारी दुनिया कहेगी “सिंह इज किंग”

अंडर अचीवरप्रधानमंत्रीअयोग्यता का प्रमाण या गरिमा के साथ खिलवाड़ ?

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