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“यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि – एकतरफा प्रस्ताव या सामाजिक जरूरत-Jagran Junction Forum”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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एक शादीशुदा लड़का अपनी कुंवारी साली से बड़ी ही बेबाकी + बेशर्मी से कह रहा था की भूख दो तरह की होती है एक पेट की और दूसरी बदन की , तुमको इस समय कौन सी भूख सता रही है ? …… यह केवल एक की ही बात नहीं है बल्कि ज्यादातर युवाओं की सोच और विचार दूषित हो चुके है ….. इसी निम्न स्तर की सोच के कारण देवर भाभी तथा जीजा साली के रिश्ते की मर्यादा में सबसे ज्यादा गिरावट आई है ……

आजकल के बच्चे अपने के पूर्ववर्ती बच्चों के मुकाबले मानसिक रूप से कहीं ज्यादा और इतना जल्दी परिपक्व हो जाते है की अक्सर ही माँ बाप को उनके सवालों का जवाब देना दुष्कर कार्य लगता है ….. हमारे बदल रहे समाजिक ढ़ांचे + नेट के इस्तेमाल और उस पर उपलब्ध हर तरह की अश्लील सामग्री तक युवाओं की पहुँच + ग्लैमर वर्ल्ड का आकर्षण तथा माडल्स की चकाचोंध भरी जिंदगी और बस अड्डों पर बिकते सस्ते किस्म के सचित्र साहित्य तथा मोबाइल में डलवाई जाने वाली नीली फिल्मों की बेहद कम दामों में आसानी से उपलभ्धता के कारण बच्चों और युवाओं में शादी के बाद वाली जिन्दगी के अनुभवों को शादी से पहले अनुभव करने का रुझान तेजी से बढ़ता जा रहा है …..

के चलते ब्वायफ्रेंड तथा गर्लफ्रेंड रखना + लिव इन रिलेशनशिप में रहना + डेटिंग करना जैसे कार्य अब धड़ल्ले से सरेआम होने लग पड़े है ….. इस सब के चलते हम दुविधा में पड़ गए लगते है ….. ना तो हम इसका विरोध कर पा रहे है और ना ही समर्थन ….. इसलिए एक बीच का रास्ता तलाशने की जरूरत महसूस करते हुए सहमति से आपसी सम्बन्ध बनाने की उम्र की समय सीमा तय करने के लिए कानून बनाने जैसी बाते हो रही है ….. क्योंकि यदि ऐसी बात नहीं होती तो शादी से पहले किसी भी तरह के सम्बन्ध को अनैतिक और अमर्यादित तथा असमाजिक मानते हुए इस पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग करते हुए सिर्फ शादी के बाद पति परमेश्वर से सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान की जाती …… लेकिन अगर आप इसको बदलते हुए समय की आवश्यकता मान कर इसमें छूट देने ही जा रहे है तो माँ बाप को मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार होना पड़ेगा …. तब माँ बाप इस बात को मानेंगे की और कहेंगे की हाँ मेरे बच्चे अभी तो सिर्फ आपसी सहमति से सम्बन्ध बनाने के काबिल हुए है इनकी शादी में तो अभी देर है …..

लड़की भी अपने अठाहरवे जन्मदिन का बेसब्री से इंतज़ार करेगी और लड़के तो बैठे ही इसी ताक में होंगे की गली मोहल्ले और शहर की किस लड़की ने अपना अठाहरवा जन्मदिन मना लिया है या फिर मनाने के करीब है …..

कहाँ तो हम लोग ग्यारह साल तक की लड़कियों को माता की कंजक मान कर नवरात्रों में पूजा करते है और दूसरी तरफ नापाक इरादे तथा मंसूबो वाले नीच पुरुष पर जब शैतान की सवारी आ जाती है तो वोह कामान्ध होकर इतना नीचे गिर जाता है की उसको इस बात का भी ख्याल नहीं रहता की जिसका वोह शोषण करने जा रहा है वो छह महीने की है या फिर छह साल की ….. उम्र का ख्याल तो किसी हद तक विवेकवान और पढ़े लिखे तथा संस्कारी लोग ही रखेंगे ….. लेकिन जो लोग अनपढ़ तथा असहनशील है उनसे किसी भी तरह की समझदारी की आशा व्यर्थ है …..

इसी के साथ -२ यह भी कहना चाहूँगा की जहां पर आग दोनों तरफ ही बराबर लगी हुई हो वहां पर भी उम्र का ख्याल कौन माई का लाल रखना चाहेगा ….. फिर भी अगर कम उम्र की लड़कियों की सुरक्षा के मद्देनजर कोई कानून बनता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए ….. केवल कानून बना देने भर से जिम्मेवारी खत्म नहीं हो जाती …. उसको सख्ती से लागू करना तथा दोषियों को सख्त से सख्त सज़ा देना जिससे की इसी तरह की मंशा पाले हुए दूसरे पुरुषों की इस तरह के कुक्र्त्य करने की हिम्मत ही ना हो सके…..

अब फिर से घूम फिर कर भूख पर आते है ….. जिसको बदन की भूख लगी है वोह यह नहीं देखेगा की मैंने कच्चे फल का स्वाद चखना है या फिर पके हुए का क्योंकि उसको तो सिर्फ अपने पेट को भरने से मतलब होता है …. कई बार तो मझको समाजसेवियो के बेतुके तर्क पढ़ कर हंसी आ जाती है जब वोह कहते है की आज तो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है कम से कम आज तो पुरुषों को महिलाओं से बलात्कार और जोर जबरदस्ती जैसी घिनौनी हरकते नहीं करनी चाहिए थी …. अरे भाई लोगों जिनको अपना काम करना है वोह आपके किसी खास दिन से बंधे हुए नहीं है…. और ऐसे काम में ना तो छुट्टी का तो कोई मतलब है और ना ही व्रत रखने की कोई तुक ……

महिलाए हमेशा ही कहती रहती है की हम पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं है + पीछे नहीं है + उनसे कमतर नहीं है इसलिए उनसे बराबरी का हक तथा समान अवसर चाहती है ….. लो भाई आपकी इस मांग को मद्देनज़र रखते हुए अब पुरुषों द्वारा उम्र की एक तय समय सीमा से कम उम्र महिलाओं से आपसी सम्बन्ध बनाने के सफल और असफल प्रयासों को ही क्यों ना हो .….

हमे फख्र करना चाहिए की अब हम पिछड़ेपन की श्रेणी से निकल कर अति आधुनिक की श्रेणी में प्रवेश करने की तरफ एक और कदम बढ़ाने जा रहे है …..

बाइसवी सदी के आधुनिक भारत का एक नागरिक

राजकमल शर्मा

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