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“पहले शिक्षा लो और फिर प्यार लो लो – प्यार दो दो” !!!

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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                                            पूरी दुनिया में  अधिकतरलोग प्यार (सेक्स ) के बारे में चर्चा करने से कतराते  हैं लेकिन अब तेजी से बदल रहे आधुनिकतम तकनीकों से युक्त जमाने में उन्हें अपनी सोच तथा नजरिए को बदलने कीजरूरत है …. अभी थोड़े दिन पहले ही लन्दन में यीवा – मारिया थाम्पसन ने दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय सेक्स स्कूल खोलाहै , जहां लोगों को बेहतर ढंग से प्यार लेने और देनेकी  आधुनिकतम  शिक्षा – दीक्षा प्रदान की  जाएगी  …… डेली मेलमें प्रकाशितरिपोर्ट के मुताबिक वियाना में खोले गए इस आस्ट्रियन इंटरनेशनल स्कूल में मात्र 1,400 पौंड (करीब एक लाख तेरह हजार रुपए) में बेहतरीन ढंग से प्यार करने की शिक्षा प्रदान की  जाएगी ,ताकि नई तकनीक और कौशल में पारंगत विधार्थी  अपने पार्टनर को प्यार  के मामले में पूरी तरह से संतुष्ट कर सकें…..

 इस आधुनिकतम  स्कूल की प्रिंसिपल ने बताया कि 16 साल से   अधिक उम्र के इच्छुक लोग प्यार का नवीनतम और व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए  इस स्कूल मेंदाखिला ले सकते हैं …. उन्होंने बताया है कि यह दुनिया का पहला व्यवहारिक सेक्स स्कूलहै , जहां सब कुछ प्रैक्टिकल होगा …… इस स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल  प्यार करने की  की बेहतर तकनीक , पार्टनर को रिझाने केतरीके और उसे संतुष्ट करने के तरीके सिखाए जाएंगे …..

                             स्कूल के प्रवक्ता मेलोडी क्रिशने कहा है कि यह स्कूल पूरी दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान बनाएगा ,  हालांकि यह स्कूल आस्ट्रिया मेंकाफी विवादों में है और दिखाए जाने वाले एक विज्ञापन पर रोक लगाई जा चुकी है , जिसमें एक जोड़े को प्यार  करते हुए दिखाया गया है ….. लेकिन मेरी नजर में यह सरासर गलत और अनैतिक तथा अन्यायपूर्ण है ….. अब आप सिखा रहे हो प्यार करना तो उसके विज्ञापन में ध्यान करना तो दिखा नहीं ना सकते और  अगर स्कूल प्रबंधन ऐसा करता तो यह सरासर बेईमानी कहलाती  ……

                              इस स्कूल के अस्तित्व में आने से पहले तक हमारा  जगत प्रसिद्ध भारतीय कामसूत्र और अजंता एलोरा के भित्तिचित्र ही सारे संसार को राह दिखाते हुए मार्गदर्शन कर रहे थे …… लेकिन अब इस मामले में हमारा विश्व गुरु का ताज और तख़्त खतरे में पड़ता नजर आ रहा है ….. इसको बचाने के लिए हमको युद्ध स्तर पर कुछ ना कुछ कदम तो उठाने ही होंगे :-

*अगर हमारी निकम्मी सरकार इस दिशा में कुछ नहीं कर सकती तो फिर यूरोप को अपना गुरु मानते हुए प्रत्येक भारतीय को लन्दन में जाकर इस स्कूली शिक्षा को प्राप्त के लिए अनुदान देना चाहिए ……

*बैंको को खुले मन से इस सर्जनात्मक तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करने के चाहवान लोगों को सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज देने  चाहिए …..

*हमारे देश के बेरोजगार लोगों को उस स्कूल से जानकारी प्राप्त करने के बाद वापिस आकार इस देश में बेहतर तरीके से प्यार लों लों और प्यार दो दो का प्रचार और प्रसार करना चाहिए….. ताकि यह व्यवहारिक ज्ञान सिर्फ यूरोप  तक ही सीमित  होकर ना रह जाये …..

  और उस स्कूल में जो योग्य तथा प्रतिभावान शिक्षक प्रैक्टिकल ज्ञान देंगे उसको देने के लिए हो सकता है की हमारे देश में शुरुआत में शिक्षक ना मिले लेकिन तब तक हमे बाहर से शिक्षक आयात करके अपने नोनिहालो को व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने का सुनहरा अवसर प्रदान करना चाहिए …..  उस स्कूल में पढ़ कर आने वाले बच्चे जब अपने माता पिता को घर पर आकर कहेंगे की मुझे होमवर्क करने अपने दोस्त/ अपनी दोस्त के पास जाना है तो मां बाप को भी अपने दकियानूसी और पिछड़े विचारों को दरकिनार करते हुए यह कहना ही पड़ेगा की बेटा /बेटी ! अगर ट्यूशन की जरूरत महसूस हो तो बेझिझक कह देना , उसका भी इंतजाम कर दिया जाएगा , बस तुम्हारी शिक्षा दीक्षा में किसी भी प्रकार की कमीनहीं रहनी चाहिए , हमारा तो यही अरमान है की तुम व्यवहारिक ज्ञान को जान समझ कर किसी काबिल बन जाओ …… और कुछेक असाधारण प्रतिभा के स्वामी बच्चे भी बड़े हो कर बहुत ही  गर्व से बताना पसंद करेंगे की हमने जिस स्कूल में कभी शिक्षा प्राप्त की थी आज उसी में शिक्षक के पद पर कार्यरत है …..

                                   लेकिन एक बात मेरी समझ से परे  है की जिस काम  को जानवर तक भी करना जानते है उसको करना सिखाने की आखिरकार क्या तुक है …… अगर सिखाना ही है तो मानव को इस समाज में शांतिप्रिय तरीके से + प्रेमपूर्वक + आपसी सदभाव से रहते हुए जन्मजात और समाजिक रिश्ते निभाने तथा सबसे बढ़कर उनका मान सन्मान करना सिखाना चाहिए जिसको की वोह आगे बढ़ने की चाह में दिनोदिन भूलता जा रहा है …..

                        क्या इस शिक्षा के प्रभाव के अधीन होकर आने वाली नई नस्ले हम वर्तमान जनता जनार्दन से ज्यादा उन्नत और प्रगतिशील + सूझवान + मानसिक रूप से ज्यादा उन्नत और विकसित रूप में सामने आएंगी ?……

                     शायद नहीं ! क्योंकि मेरा यह मानना है की आदमी और विज्ञान चाहे कितनी भी  तरक्की क्यों ना कर ले कुदरत से एक कदम (अनेको कदम+ अनगनित कदम ) हमेशा पीछे ही रहता है ….. आदिकाल से ही हर समय कम से कम एक ना एक बिमारी ऐसी रही है जोकि लाइलाज रही है ….. अब जबकि एड्स जैसी बिमारी किसी हद तक कंट्रोल में होती दिख रही है तो ऐसे में कुदरत के कानून के अनुसार एक नई लाइलाज बिमारी हमारे समाजिक जीवन में प्रवेश करने के लिए  तैयार बर तैयार बैठी है ….. बस जरूरत है उसके लिए उचित अवसर और अनुकूल माहौल बनाने की और पैदा करने की ….. क्या पता यह स्कूल उस दिशा में एक ऐतहासिक और युग प्रवर्तक मील का पत्थर साबित हो जाए…. आइये हम  सभी भी इस महान कार्य में अपना बनता योगदान दे …..

                                                                      राजकमल शर्मा                        

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