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(इसके पिछले भाग में आपने पढ़ा की जालंधर शहर में रहने वाले दो बरस के खालिद के हाथों अनजाने में ही ( भिड़ो ) ततैया का रूप धार कर शादी के जलसे में शरीक होने जा रहे जिन्नों का पूरा एक खानदान मारा जाता है …. बंटवारे के बाद पकिस्तान के सक्खर में जाकर बस गए खालिद को उस हादसे में बच गई बेटी (जिन्नी) अपनी ज़ख्मी माँ के कहने पर खालिद से ऐनी का रूप बदल कर मिलती है ….. एक दिन कुएं में गिरने से बचाने पर ऐनी खालिद का शुक्रिया अदा करती है ….. लेकिन उस हादसे के बाद दुबारा उनकी मुलाकात नहीं होती ….. अब आगे :-
इस घटना के काफी अरसे के बाद जब मेरी उम्र सत्रह साल थी , एक रोज मैं कारखाने से छुटटी करके घर आ रहा था कि पीछे से एक गाड़ी ने हार्न दिया ….. मैं इस कद्र थका हुआ था कि हार्न सुन नहीं सका और वोह गाड़ी मुझसे टकरा गई ….. गाड़ी की टक्कर से मैं सड़क पर गिरा और थोड़ी देर के लिए होशो –हवास से बेगाना हो गया ….. जब मेरे हवास बहाल हुए तो मैंने देखा कि एक लड़की जोकि शक्लोसूरत से बिलकुल अंग्रेज लग रही थी, मुझे उठा रही थी …..
“तुम हमको नई पहचाना खालिद ?” वह मुझसे बोली …. मैं हैरान हुआ कि यह लड़की कौन है …. मैंने उसे गौर से देखा मगर पहचान नहीं पाया तो मैंने इनकार में सिर हिला दिया …. “हम ऐनी है ऐनी” वह बोली “हम और तुम उस बंगले में झूला झूलता था” ….. अब मैंने गौर से उसका चेहरा देखा, तो पहचान गया ….
मेरे यह कहने पर की तुम्हारे पिता ने तो कह दिया था की तुम उनकी बेटी ही नहीं हो ….. तब उसने कहा की “बेवकूफ ! मैं तो उनके पड़ोस में रहने वाले डेविड साहिब की बेटी हूँ , मैं वहां पर सिर्फ खेलने जाया करती थी ….. उस हादसे के बाद उन्होंने मुझे वहां खेलने से मना कर दिया था …. इस तरह मेरी और तुम्हारी मुलाकात नहीं हो सकी ….. तुम सिर्फ एक दिन पूछ कर ही वापिस चले गए और फिर दुबारा लौट कर नहीं आये ….. मैं तुम्हारा इन्तजार करती रही कि तुम दुबारा आओगे , तो मैं तुम्हे बताऊं” ….. “यह मेरी गलती थी” मैं बोला ….. “चलो अब इस गलती की सजा भुगतो और मेरे साथ चलो” ….. वोह मुझको कार में बैठा कर फिर उसी झूले वाले बंगले में लेकर आ गई ….. उसने बताया की अपने माता पिता के इंतकाल के बाद अब वोह इन्ही राबर्ट साहब के साथ रहती है ….. हम फिर से मिलने लगे , लेकिन हमारे मिलने के दौरान उस घर में कोई नहीं होता था ….. उसको अपने सामने पा कर मैं अपने मन में उसके प्रति उठने वाले सारे सवालात भूल जाया करता था …..
सक्खर में गरीबाबाद के नजदीक एक काजी बाबा नाम के बुजुर्ग रहते थे , जो काजी बाबा के नाम से मशहूर थे …. एक रोज किसी काम के सिलसिले में उनकी गली में जाना पड़ा ….. वोह बाहर ही बैठे हुए थे , मैं सलाम करने के लिए रुका तो वोह बोले “मौलवी का धागा तुमने गुम कर दिया और फिर से उसके चक्कर में पड़ गया है तू ?….. जिसके पीछे तू भाग रहा है , वोह तेरी दुश्मन है क्योंकि तू उसके खानदान का कातिल है ….. वोह आदमजात नहीं है वोह तेरा कत्ल कर देगी” ….. फिर उन्होंने एक स्याह काला धागा कुछ मन्त्र पढ़ने के बाद उसमे गाँठ लगा कर मुझको गले में डालने के लिए दे दिया और बोले कि इसे गले में इस तरह से डाल ले कि यह उसको नजर न आये …. वोह तेरा पीछा छोड़ देगी” ….
मैं वह धागा गले में पहन कर शाम को फिर से ऐनी से जब मिलने पहुंचा तो वोह बड़ी ही बेताबी और बेचैनी से मेरा इंतजार रही थी …. मुझसे वोह उसी बेताबी से मिली और बड़ी ही बेतक्ल्लुफी से मेरे गले में अपनी गौरी बाहें डाल दी , मगर जैसे ही उसने मेरे बदन को छुआ , एक जोरदार चीख मारकर एकदम झटके से अलग हो गई और गौर से मेरी तरफ देखते हुए बोली , खालिद , क्या बात है ? आज तुम्हारे बदन से आग निकल रही है” … मैंने कह दिया की नहीं , कोई खास बात नहीं है ….. मगर वोह बिना पलके झपकाए गौर से मुझको देखे ही जा रही थी …. मैंने उससे पूछा की वोह सच में अपनी हकीकत बताए की वोह असल में है कौन ….. मेरे सवाल के जवाब में वोह मुझे बड़ी ही अजीब सी नजरों से देखने लगी …. फिर बोली कि “खालिद हम दोनों एक लंबे अरसे से एक साथ है …. फिर भी तुम मुझ पर शक कर रहे हो …. आखिर क्यों ?” …… मैंने उसको गौर से देखते हुए कहा “इसलिए कि तुम आदमजात नहीं हो” …. वह हंसते हुए बोलो कि “तुम्हे गलतफहमी हो गई है , मैं भी तुम्हारी तरह ही इक इंसान हूँ” …..”तुम बताना नहीं चाहती ….. खैर यह हमारी आखिरी मुलाकात है …. आइन्दा मैं यहां पर कभी भी नहीं आऊंगा” …..
ऐसा मत कहो” वह मछली की तरह से तड़पकर बोली , “मैं तुम्हारी मुहब्बत में इतना आगे बढ़ चुकी हूँ कि अब मेरे पास वापसी की कोई भी राह नहीं रही”……
“अच्छा ! तो फिर तुम्हे इसी मोहब्बत की कसम ….. मुझको अपनी हकीकत बता दो”…….
उसकी आँखे आंसुओ से भर गई …. अब मैं मजबूर हो गई हूँ कि तुम्हे सब कुछ सच बता दू मगर उसके बाद हमारे रास्ते जुदा हो जाएंगे …. क्या तुम यह सदमा सह लोगे?…….
मैं उत्सुकता से इतना दीवाना हो रहा था कि मैंने बगैर सोचे समझे ही कह दिया कि , हां ….
वह बताने लगी , तो सुनो जैसा कि तुम्हे उस तांत्रिक ने बताया था , तुमने भिड़ो को जो पत्थर मारा था , उसमे मेरा बाप , भाई और दोनों बहने मारी गई थी और मेरी मां जख्मी हो गई थी ….. वह इस काबिल नहीं थी कि तुमसे अपने खानदान के खात्मे का बदला ले सकती , इसलिए उन्होंने मुझसे बदला लेने को कहा था … यही वजह थी कि मैं बार -२ रूप बदल कर तुम्हारे पास आई और बदला लेने की कोशिश की …. मगर उस दिन जब तुमने कुएं में गिरने से मेरी जान बचाई , तो मैंने बदला लेने का इरादा छोड़ दिया था …. लेकिन अब जो मैं दुबारा से तुम्हारे नजदीक आई थी , तो अपनी मां के कहने पर आई थी ….. मगर तुम्हारी मुहब्बत में गिरफ्तार हो गई ….. आज मुझे अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हे जान से मार देना था …. क्योंकि मेरी मां ने मुझको जो मोहलत दी थी उसका आज आखिरी दिन था ….. मगर इत्तेफाक से आज ही मेरी मां का इंतकाल हो गया ….
उस वक्त मैं उसके सिराहने थी और जब मैंने उसे तुम्हारी बाते बताई, तो उसने तुम्हे माफ कर दिया …. इसलिए मैं हद से ज्यादा खुश थी कि अब से हमेशा के लिए तुम्हारे संग रहूंगी ….. मगर ऐसा लगता है कि खुशियां मेरे नसीब में नहीं , क्योंकि अपनी हकीकत बताने के बाद मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती” इतना कहकर वोह रोने लगी …..
जब वह खामोश हुई तो मैंने पूछा,”तुम तो जिन्नी हो और जब तुम कुएं में गिरने लगी थी तो अपनी ताकत से काम लेकर तुम खुद अपनी जान बचा सकती थी ….. फिर तुमने उस समय ऐसा क्यों नहीं किया ?”….
“नहीं ,”वह बोलो ,हमारी भी कुछ हदे होती है , हम जिस रूप में होती हैं , उसकी खूबी और खामी हमारे साथ चलती है …. अगर ऐसा न होता तो मेरे घरवाले तुम्हारे हाथ से लगने वाले मिटटी के ढेले से न मारे जाते” ….
वोह फिर से खामोश हो गई और फिर कुछ देर के बाद बोली ,”खालिद आज जाने से पहले आखिरी बार मैं तुम्हारे गले लगना चाहती हूँ ….. तुम यह धागा उतार दो” ….
मैं धागा उतारने में कुछ हिचकिचाया तो वह बोली तुम्हे अब भी शक है ? मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूँ …. अब तुम्हे क्या नुक्सान पहुंचाऊंगी, जब मैं तुम्हे छोड़कर जा रही हूँ ?…..
मैंने अपने गले से वोह धागा निकाल दिया तो वोह मेरे सीने से लग कर फूट फुटकर रोयी …. आखिर जब उसके दिल का गुबार निकल गया तो वह अलग हो गई और फिर बोली ,” मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारे बगैर जिंदा नहीं रह सकती ,इसलिए तुम मुझे इजाजत दो कि जब भी मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो जाऊं तो तुमसे मिलने चली आऊं”….
मैंने इजाजत दे दी …. वह एक बार फिर से मेरे सीने से लग कर रोने लगी और फिर धीरे से खुदा हाफिज कहकर मेरी नजरों से गायब हो गई …. उस दिन के बाद वोह मेरी शादी के मौके पर सुहागरात को मेरे पास आई , यानि कि जैसे ही मैंने अपनी बीवी का घूंघट उठाया तो यह देखकर हैरान रह गया कि ऐनी दुल्हन बनी बैठी है …. उसने मुझे मुबारकबाद दी और चली गई …. फिर दूसरी दफा उस वक्त आई , जब मेरे घर बेटा पैदा हुआ …. मैंने देखा कि वोह काफी कमजोर हो गई थी …. “तुम अपना ख्याल रखा करो” मैंने कहा …..
“किसके लिए?” वह हसरत से बोली और कुछ कहे बगैर चली गई …. उसके बाद मेरे पांच बच्चे हुए और ऐनी हर बच्चे कि पैदाइश पर मुझे मुबारकबाद देने जरूर आई ….
आखिरी बार वह मेरी बीवी के इंतकाल के बाद आई ….. बीवी के इंतकाल के बाद एक दिन मैं उदास बैठा हुआ था कि वह अचानक आ गई …. मैं उसे देखकर हैरान रह गया ….वह बिलकुल ढांचा लग रही थी … आते ही वह मेरे बाजुओ में झूल गई और कहने लगी,” खालिद मेरी आखिरी ख्वाहिश यह थी कि मैं तुम्हारे बाजुओ में मरूं ….
आज मेरी यह ख्वाहिश भी पूरी हो रही है ….. अब मैं इस दुनिया से जा रही हूँ ….. तुम मेरी कहानी को आम कर सकते हो …. इतना कहते –कहते उसकी आंखों में से गंगा जमुना बहने लगी ….. चंद लम्हों में ही उसने दम तोड़ दिया और फिर उसका वजूद धुआं बनकर मेरी नजरों से ओझल हो गया …..
खुदा हाफिज !
*एक सच्ची दास्तान – जोकि मैंने एक किताब में थी पढ़ी ….
( “जिन्न की शादी – दूसरा और अन्तिम भाग – रहस्य रोमांच विशेष” )
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