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“खुदा का खत”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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मेरे मीठे बच्चे

            आज सुबह जब आप निन्द्रा से उठे (जगे ) , तब एक आशा लिए मैं आपको देख रहा था कि आप जरूर मुझसे कुछ तो बाते करेंगे ही ….. फिर चाहे केवल थोड़े ही शब्दों में क्यों न हो , मगर आप मुझसे अवश्य ही कुछ बाते करेंगे …. आप मेरा अभिप्राय जानना चाहेंगे या फिर कल आपके जीवन में जो –जो भी शुभ घटनायें घटी , आप उसके लिए मुझको धन्यवाद अवश्य देंगे ….. किन्तु मैंने देखा कि आप अत्यंत ही व्यस्त थे ….. कार्य – स्थल पर पहुँचने की  जल्दी में आप अपने प्रातः कार्यों से निपटने में रत थे ….. मैंने सोचा की जब आप अपने प्रातः कार्यों से निपट लेंगे तब आप मुझे याद करेंगे ….. और मैं इन्तजार ही करता रहा …. जब आप तैयार होकर घर से निकल पड़े , तब मैं समझता था कि कुछ मिनट ठहरकर आप मुझे नमस्कार या ‘हैलो’ तो जरूर  करोगे ही …..किन्तु मैंने देखा कि आप तब भी बहुत व्यस्त थे और आप  मुझसे बात किये बिना ही अपने कार्य – स्थल पर पहुँच गए …. कार्य – स्थल  पर पहुँचने के बाद भी आपके पास पर्याप्त समय था मुझको याद करने के लिए , परन्तु आपने मुझको याद नहीं किया बल्कि आप उठे और फोन उठा कर अपने किसी मित्र से गपशप करने लगे …. मैंने सोचा कि शायद अपने मित्र से बात करने के बाद आपको मुझ “खुदा – दोस्त” कि याद अवश्य आयेगी और आप मुझसे जरूर कुछ बात करेंगे ….. और मैं प्रतीक्षा ही करता रहा …..

                         आपकी इन प्रवृत्तियों को देखकर मैंने अनुमान लगाया कि आप इतने व्यस्त थे कि आपके पास मुझसे बात करने को समय नहीं है ….. और मैं धैर्यतापूर्वक आपको कार्य करते हुए देखता रहा तथा इन्तजार करता रहा कि कब आप समय निकाल कर मुझसे बात करेंगे ….. भोजन से पूर्व जब आपने आसपास नज़र दौड़ाई तो  मुझे लगा था कि शायद आप मुझसे बात करने के लिए व्याकुल है ….. परन्तु आप मुझे नहीं बल्कि अपने किसी अन्य  मित्र को देख रहे थे , जिस पर नज़र पड़ते ही आपने उसे अपने पास बुलाया और साथ खाना खाने के लिए कहा ….. आपने मुझको एक बार भी याद नहीं किया ….. और मैं इन्तजार ही करता रहा कि शायद आप मुझको याद करेंगे ……

                           जब कार्य-स्थल से वापस अपने घर पहुँचे तो तब मैंने यह आशा रखी थी कि अब तो आप अवश्य ही मुझसे बातें  करेंगे ….. परन्तु कुछेक कार्य पूर्ण हो जाने के बाद आपने टी.वी./पी.सी. चालु किया और उसके सामने बैठ गए …. मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि आपको  टी.वी./ पी.सी. इतना पसंद क्यों है ? ….. प्रतिदिन आप टी.वी./पी.सी. को देखने/प्रयोग करने में अपना बहुत समय व्यय करते है ….. मैं सब्रपूर्वक आपका इन्तजार करता रहा और आशा भरी निगाहों से आपको  टी.वी./पी.सी. को देखने/प्रयोग करते- देखते हुए, रात्रि भोजन लेते हुए, गपशप करते हुए निहारता रहा कि शायद आप मुझसे बात करेंगे परन्तु आपने मुझसे कोई बात-चीत नहीं की …. थके हारे जब आप अपने बिस्तर की और जा रहे थे तो मैंने सोचा कि सोने से पहले तो आप अवश्य ही मुझको याद करेंगे और मुझसे कुछ श्रण बात करेंगे ….. परन्तु आपने परिवारजनों को शुभरात्रि कहते हुए आप बिस्तर पर लेट गए और कुछ ही पलों में आप निन्द्राधिन हो गए ….. और मैं प्रतीक्षा करता ही रह गया ….

                      शायद आपको यह  अहसास ही नहीं होगा कि मैं सदा आपके आस-पास ही रहता हूँ …. मेरे पास आपको देने के लिए बहुत कुछ है और मैं वोह सब आपको देना चाहता हूँ ….. मैं आपको इतना अधिक प्यार करता हूँ कि मैं हर रोज आपकी अराधना, आपके दिल का प्यार, ह्रदय के उद्दगारो को सुनने कि प्रतीक्षा करता रहता हूँ ….. अच्छा, फिर से आप सोकर उठ रहे है और मैं ….. फिर एक बार प्रतीक्षा कर रहा हूँ ….. दिल में आप के प्रति बेहद प्यार लेकर, इसी आशा में कि आप आज तो मेरे लिए जरूर कुछ समय निकालेंगे ही ……

                                         आपका मित्र

                                       राजकमल का पिता

                                          खुदा दोस्त  

*यह खुदा का खत ब्रह्म कुमारीज के गुरुजनों का है –जिसे आप सभी कि सेवा में प्रस्तुत करके अपने पापों को थोड़ा बहुत तो कम कर ही लूँगा यकीनन ….

*उस परवरदिगार को मैं अपना पिता और खुद को उसका बेटा मानता हूँ –अगर किसी को आपति है तो मैं अपने पिता के प्यार को उससे भी शेयर कर लूँगा …..

                ( “खुदा का खत” )      

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