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जब से यार लोगों ने यह खुशखबरी सुनी है की हमारा यह महान देश भारत वेश्यावृत्ति को क़ानूनी मान्यता देकर थाईलैंड जैसे दूसरे देशों के समकक्ष खड़ा होने जा रहा है , हमारी खुशी का ना तो कोई ठिकाना है और न ही हर्ष का कोई पारावार रहा है ……
हमको हमारे जगाडू लोगों की काबलियत पर पूरा भरोसा है …. इनके बलबूते ही हम यह दावा कर सकते है की बहुत जल्द ही हम अनाड़ी से बन जायेंगे खिलाड़ी नम्बर वन और इस धन्धे में “सबसे आगे होंगे सिर्फ हम हिन्दुस्तानी” …..
आखिर हो भी क्यों ना , हमारा तो पुरातन इतिहास ही रंगीनियत भरा रहा है ….. हम यह कैसे गंवारा कर सकते थे की कम से कम इस मामले में हम किसी से पीछे रह जाए ….. जब हम भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में पहली कतार के अग्रणी देशों में है तो वेश्यावृत्ति के अपने पुरातन एकाधिकार वाले धन्धे में हम कैसे पीछे रह जाए ….. देर से ही सही अब जब हमको सरकार ने यह सुनहरा अवसर प्रदान किया है तो यह हमारा फर्ज बनता है की हम अपने पिछड़ेपन को दूर करके खुद को इस मामले में लम्बी रेस का घोड़ा साबित करते हुए सभी को न केवल पीछे छोड़ दे बल्कि एक विश्वगुरु की अपनी भुमिका का निर्वहन करते हुए पुरे विश्व का मार्गदर्शन भी करे …..
अब जब नवाबों तथा राजाओं और महाराजाओं का जमाना नही रहा है तो हमारी इस विलुप्त होती जा रही संस्कृति को कानून बना कर सरक्षंण देकर सरकार ने एक सराहनीय कार्य किया है …… अब हम भी अपने पूर्वजो की भांति कलफ लगा हुआ लखनवी कुर्ता-पायजामा पहन कर मुंह में बनारसी पान की गिल्लोरी चबाते हुए अपने हाथ पर गजरा लपेट जब शहर की नामचीन वेश्याओं के पास मुजरा सुनने ( “पान खाए सैया हमारो” ) और कुछ कर गुजरने जायेंगे तो हमारी शान ही कुछ निराली होगी …..
हमारा मन तो पहले भी बहुत दुःखी हुआ करता था जब हम यह ह्रदय विदारक समाचार पढ़ा करते थे की “रंगरलिया मनाते रंगे हाथ पकड़े गए” – रंगरलिया मनाने की तैयारी करते काबू”- ….. आज से पहले इन पुलिस वालो से यह पूछने वाला कोई नहीं था की अरे भाई ! तुमको आखिर तकलीफ क्या है ?…. + क्यों इनके अच्छे भले रंग में भंग डालने पर तुले हुए हो ? ….. इन मतवाले और बेकाबूओ को क्यों काबू करने पर तुले हुए हो ?….. हमको पूरा यकीन है की इस कानून के बन जाने के बाद न केवल इस बेलगाम पुलिस फ़ोर्स की इस निरकुंशता पर नकेल कसने में सहायता मिलेगी बल्कि किसी भी नागरिक जोड़े के मौलिक अधिकारों का इस प्रकार से हनन भी नहीं होगा ….. इसीलिए हमारे जगाडू दिमाग ने उस पुरानी कहावत की “जब मियां बीवी राजी – तो क्या करेगा काजी” की तर्ज पर एक नई कहावत को इजाद किया है –“जब ग्राहक और खरीददार राजी तो क्या करेगा पुलिस वाला पाजी”……
अब जब यह सरकारी मान्यता प्राप्त धन्धा बनने वाला है तो सरकार को इसके सरक्षंण के लिए भी पूरे प्रयास करने चाहिए ….. हमे विदेशी सहायता पर निर्भर ना रह कर अपने खुद के साधनों और संसाधनों से ही इस धन्धे को प्रफुल्लित करना चाहिए ….. इसके लिए विदेशों से धन्धा करने आई हुई गोरी चमड़ी वाली बालाओं पर पुरी तरह से अंकुश लगा देना चाहिए ….. लोगों को समझाया जाना चाहिए कि :-
* यह शरीर नश्वर और नाशवान है ….
*गोरे और काले में भेद नहीं करना चाहिए –इसलिए गोरी की बजाय काली चमड़ी को ही प्राथमिकता और अधिमान दे ….
*सदैव सिर्फ “स्वदेशी वस्तुओ” का ही सेवन करे…..
जब भी हमारे देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर का कोई आयोजन हो तो बाहर से वेश्याओं को न बुला कर स्वदेशी बालाओं को ही मौका और प्रोत्साहन देकर देश की “कीमती विदेशी मुद्रा” को बाहर जाने से बचाया जाए …..
मैं उम्मीद करता हूँ की इस ऐतहासिक और क्रांतिकारी कानून से हम अपने पुराने नगरवधुओं और देवदासियों वाले गौरव को फिर से प्राप्त कर सकेंगे तथा विश्व में हम फिर से अपना सर ऊँचा कर के चल सकेंगे ….. तो फिर बोलो मेरे संग
जय हिन्द ! जय हिन्द !! जय हिन्द !!!
राजकमलिया तड़का :-
होनहार राजकमल जी और चिकने पात वाले उनके छोटे भाई को अपने केन्द्रीय गुप्त कक्ष में ले जाकर एक दिन उनके पिता जी बोले की “देखो बेटा ! आज मैं तुमसे बहुत ही महत्वपूर्ण और राज की बात कहने वाला हूँ की आज के बाद से हमारे शहर के मीना बाजार की पाकीजा नम्बर तेरह (हमारे आकाश भाई की पसंदीदा) को तुम अपनी मां समान इज्जत देना क्योंकि हम कल से उसके पास जाया करेंगे …… तब वोह दोनों बोले की पिता जी आप भी एक से पच्चीस नम्बर वाली कोठेवालियों को अपने बड़े बेटे की बहुओं और छब्बीस से पचास तक की कोठेवालियों को अपने छोटे बेटे की बहुओं समान ही इज्जत देना ….. पिता जी कल्पित मनवा से बोले की क्या यही दिन देखने के लिए ही मैंने तुम दोनों को पैदा किया था …. हरामजादों ! सात घर तो डायन भी छोड़ देती है , और तुमने अपने बाप के लिए सात वेश्याएं भी नहीं छोड़ी” ….. तब वोह दोनों ढीठ और बेशर्म बोले की “पिता जी चूँकि आपने हमारे बारम्बार कहने पर भी हमारा जेबखर्च नहीं बढ़ाया था इसलिए बाईस नम्बर वाली शीला की जवानी हमारे हाथ नहीं आई- इसलिए आज के बाद हम उसको भी अपनी मां के समान ही इज्जत देंगे” ….
तो इस प्रकार आपने देखा कि महाभारत काल के अर्जुन ( जिसने अप्सरा की बात ना मान कर एक वर्ष के लिए किन्नर की योनि के श्राप को भोगा था ) के बाद सिर्फ हमारे खानदान में ही नैतिकता का पालन होता है …. इसलिए आप सभी हमारे खानदानी असूलों पर चलते हुए वेश्यावृत्ति को एक इज्जतदार धन्धा बनाने में अपना योगदान करे ……
चलते चलते एक शेयर अर्ज है :-
“सज धज कर बिक रहे है
जिस्म यहाँ पर बाजार में
कोई गरजमंद है तो कोई रजामंद है
बिकने को तो हम भी है तैयार खड़े
लगाया है खुद का जो मोल
उस पर कोई भी खरीददार नहीं मिलता
सभी है यहाँ पर जिस्मो के सौदागर
कोई भी रूह का तलबगार नहीं मिलता”
(“वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता – सही या गलत” ? – “Jagran Junction Forum”)
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