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चाहे ज़माने ने लाख कांटे बिछाए हमारी राह में !
तोड़ कर हर बाधा आगे बढ़ते चले गए हम मंज़िल पाने की चाह में !!
प्यार में यहाँ पर कब हर किसी को हंसी मुक़ाम मिला है !
जब भी वफ़ा की हमने बदले में बेवफ़ाई का इनाम मिला है !!
जार -२ ख़ून के आंसू रोता है यह मेरा जिगर !
जबसे उनकी शादी का किसी और से हमको पैग़ाम मिला है !!
कुछ जुदा नहीं है औरो से यारों ! तक़दीर हमारी !
हमें भी तो प्यार में चोट का अनमोल दाग़ मिला है !!
यूँ ही अधूरी हसरतों में न कट जाए कहीं यह ज़िंदगानी हमारी !
हर पुराना ज़ख़्म भरने से पहले हमें एक नया ज़ख़्म तैयार मिला है !!
नहीं हार मानी है हमने कभी भी नाकामियों से !
चाहे हर क़दम पर हमें मरने का भरपूर सामान मिला है !!
बहुत नादां था मैं जो की इक ख़ुशनुमा इंसान खोजने निकला था !
हर शख़्स मुझे अपने ग़मों से कम दूसरों के सुखों से ज्यादा परेशान मिला है !!
आंसू न बहाने का वायदा भी कहाँ पूरा कर पाया मैं !
हर आती हुई याद से पहले ही आँखों से अश्क़ों का इक सैलाब बहा है !!
दूर आकाश में कहीं कभी कोई तारा जब टूटता है !
दुनिया समझ जाती है की आज “राजकमल” को फिर से कोई नया घाव मिला है !!
हो न जाए कहीं रुसवाईया उनकी इसी डर से हर ख़त को जलाता चला गया !
मेरे मरने के बाद किसी को भी मेरे घर से नहीं कोई भी सामान मिला है !!
( “नाकाम – मोहब्बत” )
मूल लेखक – राजकमल शर्मा
उर्दू सलाहकार – श्री वाहिद काशीवासी
नोट :-आप सभी से यह गुजारिश है की
*इस रचना का कोई इससे बेहतर शीर्षक सुझाए
*अपनी पसंद की लाइन जरूर बतलाईयेगा
धन्यवाद
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