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“अधूरी – मोहब्बत”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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चाहे ज़माने ने लाख कांटे बिछाए हमारी राह में !

तोड़ कर हर बाधा आगे बढ़ते चले गए हम मंज़िल पाने की चाह में !!

प्यार में यहाँ पर  कब हर किसी को हंसी मुक़ाम मिला है !

जब भी वफ़ा की हमने बदले में बेवफ़ाई का इनाम मिला है !!

जार -२ ख़ून के आंसू रोता है यह मेरा जिगर !

जबसे उनकी शादी का किसी और से हमको पैग़ाम मिला है !!

कुछ  जुदा  नहीं  है  औरो  से  यारों !  तक़दीर  हमारी !

हमें  भी  तो प्यार में  चोट  का अनमोल दाग़ मिला है !!

यूँ ही अधूरी हसरतों में  न  कट जाए कहीं यह ज़िंदगानी हमारी !

हर पुराना ज़ख़्म भरने से पहले हमें एक नया ज़ख़्म तैयार मिला है !!

नहीं  हार  मानी  है  हमने  कभी  भी  नाकामियों से !

चाहे हर क़दम पर हमें मरने का भरपूर सामान मिला है !!

बहुत  नादां  था  मैं  जो  की  इक  ख़ुशनुमा  इंसान खोजने निकला था !

हर शख़्स मुझे अपने ग़मों से कम दूसरों के सुखों से ज्यादा परेशान मिला है !!

आंसू  न  बहाने  का  वायदा  भी  कहाँ  पूरा  कर  पाया  मैं !

हर आती हुई याद से पहले ही आँखों से अश्क़ों का इक सैलाब बहा है !!

दूर  आकाश  में  कहीं  कभी  कोई  तारा  जब  टूटता  है !

दुनिया समझ जाती है की  आज “राजकमल” को फिर से कोई नया घाव मिला है !!

हो न जाए कहीं रुसवाईया उनकी इसी डर से हर ख़त को जलाता चला गया !

मेरे मरने के  बाद किसी  को भी मेरे घर से नहीं  कोई  भी सामान  मिला है !!

( “नाकाम – मोहब्बत” )

मूल लेखक –  राजकमल शर्मा

उर्दू सलाहकार – श्री वाहिद काशीवासी

नोट :-आप सभी से यह गुजारिश है की

*इस रचना का कोई इससे बेहतर शीर्षक सुझाए

*अपनी पसंद की लाइन जरूर बतलाईयेगा

धन्यवाद

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