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“हाथों की लकीरों में विधवा का योग”

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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दोस्तों उस दिन उसके तन और मन में अत्यधिक खुशी और  उर्जा भरी हुई थी , क्योंकि उसने अपनी माँ को अपनी पसन्द की लड़की को देखने जाने के लिए राज़ी कर लेने में सफलता हासिल कर ली थी ….. और माँ के लिए भी अब उसके  इकलौते  बेटे की खुशियां ही सर्वोपरि थी …. क्योंकि अपने पति की मौत के बाद अब तक वोह उसी को देख कर ही तो जीती आ रही थी और वही अब उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था ….

                                   लेकिन तब उस नौजवान सपूत के सभी सपने टूट कर चकनाचूर हो गए जबकि उसकी माँ ने लड़की वालो के घर में एक बार लड़की को पसन्द कर लेने के बावजूद भी थोड़ी देर बाद ही उस लड़की को अपनी बहु बनाने से साफ़ -२ इनकार कर दिया …. वापसी पर रास्ते में और घर पर पहुँचने के बाद भी उस लड़के के बार -२ अपनी माँ से इनकार की वजह पूछने पर भी उसकी माँ ने उसकी कोई भी वजह नहीं बताई …. बस दोटूक शब्दों में अपना यह फैसला सुना   दिया कि वोह लड़की इस घर में किसी भी हाल में मेरी बहु बन कर नहीं आएगी …….

               अपनी माँ के इस रुख से उस बेचारे लड़के का तो दिल ही टूट गया ….. जिस माँ ने इतने अभाव सहते हुए , तमाम तरह की  परेशानियो को  सहते हुए अपने बेटे को बड़े ही लाड और प्यार से पाल पोस कर इतना लायक बनाया था ….. अब उस त्याग और कुर्बानी की मूर्त  के आगे वोह लड़का चाह कर भी उसी लड़की से शादी की  अपनी जिद्द नही कर पाया …. हालाँकि जिन्दगी में पहली बार उसको अपनी ममतामयी माँ पर इस कद्र बेइन्तहा गुस्सा आया था …. 

                      अब उसका मन ना तो यहाँ पर घर और बाहर , और ना ही किसी भी काम में लगता था …. माँ सब देख कर समझ रही थी लेकिन उसने भूल कर भी बेटे की  इच्छा को कोई भी तवज्जो नही दी ….. और फिर एक दिन वोह लड़का अपनी माँ के अरमानो पर पानी फेरते हुए , अपनी माँ के लाख मना करने के बावजूद विदेश में चला गया, अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए …..

                   अब माँ यहां पर अकेली रह गई थी …. बेटे कि याद बहुत सताती थी और वोह अकेली ही चुपचाप चुपके -२ आंसू बहाती रहती थी …. उस बेचारी ने अपना यह पक्का नियम बना रखा था की  वोह हर हफ्ते बिना कोई नागा किये अपने लाल को एक खत जरूर लिखा करती थी ….. यह अलग बात है कि उस बेटे के मन में अपनी माँ के लिए इतनी नफरत भरी पड़ी थी कि उसने कभी भी अपनी माँ के किसी भी खत का ना तो कोई जवाब ही दिया और ना ही कभी अपनी कुशलता का कोई भी समाचार भेजा …..                                                                                                                                                                                                                         कोई   तीन साल के बाद  उसका अपने वतन में वापिस  आना हुआ ….. अपने घर पर पहुँच कर उसको अपने घर पर ताला लगा मिलता है ….. पड़ोसी से  यह पूछने पर कि मेरी माँ किधर गई है और कितनी देर में आ जायेगी …. पड़ोसी  ने कहा कि तुम उसके कैसे बेटे हो जोकि एक बार गए तो फिर पलट कर अपनी माँ की  कोई खोज खबर भी नही ली …. बेटा तुम्हारी माँ अब बहुत दूर चली गई है , इतनी दूर की जहाँ से अब तुम्हारी माँ कभी भी लौट कर नहीं आएगी …..

                      इतना सुनना था कि लड़के के होश उड़ गए … वोह कहने लगा की  यह कब की  बात है और किस प्रकार मेरी माँ की  म्रत्यु हुई … पड़ोसी ने बताया की अपने अंतिम समय में उस बेचारी की बीमारी में तुमको देखने की आस  लिए हुए ही मौत हो गई , उनको परलोक गए हुए तो तीन महीने से उपर हो गए है…. लड़का कहने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है … मेरी माँ के खत तो मुझको हर हफ्ते बराबर मिलते रहे है …. अभी पिछले हफ्ते भी  तो उनका खत मेरे पास आया था …. जोकि अभी भी मेरी जेब में बिना पढ़े हुए बंद पड़ा है …..

                   पड़ोसी ने बताया की  तुम्हारी माँ नही चाहती थी की  तुम्हारी पढ़ाई में उसकी मौत की  खबर से कोई रुकावट पड़े …. अगर तुमको यह बात पता लगती तो तुम अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ कर दोड़े चले आते , और तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाता …. इसलिए तुम्हारी माँ ने  ढेर सारी चिट्ठिया तुम्हारे नाम लिख कर मुझको दे दी थी की  मैं उन पर सिर्फ तारीख डाल कर तुम्हारे नाम पोस्ट करता रहूँ …..

                    इतना सब सुनने और जान  लेने के बाद उस  लड़के की  हालत बेहद खराब हो चली थी ….. अब उससे वहाँ पर एक पल भी खड़ा होना दूभर हुआ जा रहा था …. पड़ोसी ने कहा की  यह लो अपने घर की  चाबी और उसने उसके बाद उस लड़के को  उसकी माँ की  अमानत ला कर उसके सपुर्द कर दी …. उस लड़के ने  अपने घर में जाकर उस बक्से को खोलकर देखा तो उस बक्से में ढेर सारी चिट्ठिया पड़ी थी …. जिनमे की   एक चिट्ठी ऐसी थी जोकि किसी सीलबंद मुहर लगे लिफाफे की  तरह अलग ही अपनी कहानी कह रही थी …..

                        लड़के ने सबसे पहले उस चिठ्ठी को ही बड़ी ही उत्सुकता से खोल कर देखा और पढ़ा तो पढ़ते हुए उसकी आँखे गंगा जमुना सी अनवरत बह  चली ….. उस चिट्ठी में लिखा था कि “बेटा ,  मैं जानती हूँ मेरे  मेरे  द्वारा उस लड़की को नापसंद किये जाने का तुम्हे बहुत गहरा  धक्का लगा है ….. लेकिन आज मैं तुमको वोह कारण बताना चाहती हूँ जिसके कारण मैंने वोह अप्रिय कदम उठाया था ……

                   मेरे बच्चे !  उस दिन मेरी नज़र अचानक ही उस लड़की के  हाथो पर पड़ गई थी …. और मैंने उसके हाथो में बिल्लकुल वही निशाँन  देख लिए थे जैसे कि मेरे हाथो में भी है ….. वोह निशाँन  जिस किसी भी लड़की के हाथो में होते है वोह देर या सबेर विधवा हो ही जाती है …. मेरे लाल तुम्हारे पिता को खोने के बाद मैं तुमको  खोना नही चाहती थी ….. तुम चाहे रूठ कर मुझसे दूर चले गए हो लेकिन मेरे दिल को इतना तो सकून है कि तुम इस दुनिया में जिंदा तो हो … अगर हो सके तो अपनी इस बदनसीब और अभागी माँ को इस जानबूझ कर किये गए गुनाह के लिए क्षमा कर देना …..

                                आगे खत में एक पता लिख कर बताया गया था कि बेटा तुम अगर चाहो तो  इस पते पर जाकर देख सकते हो कि जहां पर उस लड़की कि शादी हुई थी …. अपनी शादी के थोड़े दिनों के बाद ही वोह लड़की विधवा हो गई थी …. अब वोह लड़का घुटनों के बल जमीन पर अपनी गोद में वोह खत लेकर बैठा हुआ था , और जार जार रो रहा था ….. उसके आंसुओ से वोह सारा खत गीला  हो गया था ….. लेकिन अब उसकी करूण  पुकार सुनकर दिलासा देने वाली और उसके आंसू पोछने वाली माँ तो उपर चली गयी थी , हमेशा के लिए …..

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