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ऐ काश की हम आदमजात न होकर कोई भी जानवर होते !

RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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ऐ  काश की हम आदमजात न होकर कोई भी जानवर होते…

न होता कोई जाति – पाति का बन्धन

सोचते हमेशा तन की क्योंकि नहीं होता तब कोई मन….

न होता यारो को तब कोई ऊँच और नीच का भेद

रिश्तों की मर्यादा भंग होने पर तनिक भी न होता खेद…

जो भी मन में आता बड़े शौंक से वो ही कर जाते

जिससे भी दिल चाहता उसी संग हम  रास रचाते …

गोरी या काली का कोई भी नखरा नहीं होता

अंधी – कानी और लंगड़ी या लूली का भी कोई खतरा नहीं होता ….

शादी से पहले दहेज का ना कोई लेना और देना  होता

शादी के बाद जलने का भी कोई खतरा ना होता….

बिना तलाक दिए ही हम नित नई -२ शादिया रचाते

जो काम अब नहीं है कर सके वोह सब ही तब कर जाते…

हर गली और मोहल्ले के बच्चो के हम पापा कहलाते

जिस भी गली मोहल्ले से गुजर जाते सभी बच्चे पापा -२ चिल्लाते….

अपने बच्चो को पढाने के झंझट से हम बच जाते

कई बच्चो के माँ –बाप बन कर ही वोह लायक बन जाते …

हमारी हर बीवी के कई – २ पति होते

और हम  कई -२ बीविओ  के पति हो जाते ….

हर नर जानवर ही असल में एक असली मर्द होता है

अजी साहब जानवरों में भी कभी कोई नामर्द होता है ….

(कोई पत्थर या छड़ी से मत मार देना हमको

कयोंकि इस मर्द को तो दर्द होता है …)

ग्लोबल वार्मिंग का असली फायदा अब तो जानवर  पूरा – २ है  उठाते

पहले केवल सर्दी में लेकिन अब तो हर मौसम में पिल्लै है नज़र आ जाते ….

आज का आदमी जो कहीं  जानवर से भी बदतर हो चला है

देख कर उसके रंग और ढंग हर समझदार जानवर भी शर्मशार हो चला है …

जानवर होकर भी हम इंसान को प्यार से जीना सिखलाते

वैर भाव मिटा कर प्यार की इक नई दुनिया बसाते…

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