RAJ KAMAL - कांतिलाल गोडबोले फ्राम किशनगंज
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हम उनको एक के बाद दूसरा ख़त पे ख़त लिखा करते हैं-
मगर वोह संगदिल सनम की तरह उनको बिना पड़े ही फाड़ दिया करते है-
वोह अक्सर हमारे रकीबो के ख़त अपने समृति -पटल में रखा करते हैं-
और उचित अवसर मिलने पर चुपके से उनको छाप दिया करते हैं-
रब्ब ने कितना सुंदर मेरा महबूब सनम मुझको दिया है-
कमी शायद हम में है जो हम उन पे उतना सुन्दर लिख नहीं पाते-
अगर जानते किसी कर्मी को तो सिफारिश उस से लड़वाते-
अगर होते हम कुंवारे तो किसी नाते की जुगत कोई भिड़ाते-
नहीं छपी है अभी तक कोई भी मेरी रचना तांकि में कोई मेहनताना न पा लूं-
दे दो मुझको अपनी रद्दी के ही डिब्बे (रिजेक्टेड रचनाओ वाले) ताकि उनको बेच कर ही में चार पैसे कमा लूं-
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